वीडियो जानकारी:<br />पार से उपहार शिविर, 14.12.19, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश<br /><br />प्रसंग: <br /><br />ततः कदाचिन्निर्वेदान्निराकाराश्रितेन च।<br />लोकतन्त्रं परित्यक्तं दुःखार्तेन भृशं मया॥३८॥<br />~ उत्तर गीता, अध्याय १, श्लोक ३८<br />भावार्थ: इस प्रकार बारम्बार क्लेश उठने से एक दिन मेरे मन में बड़ा खेद हुआ और मैंने दुखों से घबराकर निराकार परमात्मा की शरण ली तथा समस्त लोकव्यवहार का परित्याग कर दिया।।<br /><br />नाहं पुनरिहागन्ता लोकानालोकयाम्यहम्।<br />आसिद्धेराप्रजासर्गादात्मनो मे गतीः शुभाः॥४०॥<br />~ उत्तर गीता, अध्याय १, श्लोक ४०<br /><br />~ मुक्ति माने क्या?<br />~ मुक्ति कैसे पाएं?<br />~ मुक्ति के लिए कौन सी साधना करें?<br />~ दूसरों की मुक्ति में कैसे सहायक होएं?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते